सफलता मिलने की आशा नहीं है तो इसका मतलब ये बिकुल भी नहीं है कि हम लोग कोशिश भी न करें असफलता मिलने की उम्मीद के कारण कार्य ही न करें। हमें कार्य करना चाहिए और अपनी पूरी मेहनत से करना चाहिए पर अगर मन में जरा सी भी शंका हो, तब उस शंका का निवारण जरूरी है। क्यूंकि यह मन ही है जो हमें सच से साक्षात्कार करवाता है और सत्य बात हमारे सामने बिना लाग लपेट के रखता है। दरअसल प्रयत्न और भीतर की आवाज़ सुनने में एक तरह से संतुलन बैठाना होता है और जिसने सही तरीके से संतुलन बैठा लिया उसकी सफलता दर बढ़ जाती है क्यूंकि वह अपनी गलतियों की खुद के सामने रखने से नहीं घबराता
कई बार हम दूसरों की ओपिनियन के आधार पर अपने बारे में गलत राय बना लेते है , जिस कारण हम अपने लक्ष्य के प्रति अपनी एकाग्रता खो देते है और न ही अपने लक्ष्य को हासिल क्र पाते है सिर्फ एक की चीज़ दिमाग में रहती है की हम कुछ नहीं कर पाएंगे हम में कुछ अच्छा नहीं है और फिर हम इन्फेरिओरिटी (inferiority) काम्प्लेक्स से ग्रस्त हो जाते है, और भूल जाते है कि जो भी लोग कामयाब है वो सिर्फ इसलिए क्यूंकि वह खुद को कभी किसी से कम नहीं समझते।
वे लोग हमेशा अपनी बेहतर चीज़ों पर फोकस करते है और खुद का सेल्फ कॉन्फिडेंस बनाये रखते है और अपनी पर्सनालिटी को और ज्यादा बेहतरीन बनाते है। इसलिए खुद के भीतर झांकिए और अपने आप को किसी से कम मत समझिये।